
नेपाल - राजनीतिक संकट का दौर
सत्ता के खिलाफ जनाक्रोश और राजनीतिक अस्थिरता के बीच नेपाल का भविष्य
एड0 अर्चना दुबे
9/10/20251 min read


नेपाल, जिसे “शांति और हिमालय की धरती” के रूप में पहचाना जाता है, आज राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शनों के दौर से गुजर रहा है। कभी विश्वभर में अपनी प्राकृतिक सुंदरता और स्थिर लोकतंत्र की आकांक्षा के लिए चर्चित यह छोटा-सा पहाड़ी देश अब सत्ता संघर्ष, आर्थिक संकट और जनता के असंतोष से जूझ रहा है। हाल के समय में नेपाल की सड़कों पर जो हिंसा और विरोध देखने को मिले हैं, वे जनाक्रोश से उपजी घटनाएं या किसी राजनीतिक साजिश का परिणाम हो सकती हैं।
इस लेख में हम नेपाल की मौजूदा हिंसा के कारणों, सत्ता और जनता के बीच बढ़ते टकराव, राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभावों के साथ-साथ भारत और दक्षिण एशिया के भविष्य पर इसके संभावित असर का विश्लेषण करेंगे।
नेपाल में हिंसा की जड़ें: सत्ता संघर्ष और जनता का मोहभंग
नेपाल की राजनीति हमेशा अस्थिरताओं से भरी रही है। वर्ष 2006 में राजतंत्र के अंत और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद यह उम्मीद थी कि जनता को एक स्थिर और पारदर्शी शासन मिलेगा। लेकिन बार-बार की सरकार बदलने की परंपरा, भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थागत संरचना और सत्ता के लालच ने जनता की उम्मीदों को तोड़ दिया।
हाल ही में जारी प्रदर्शनों और हिंसा की घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि जनता का धैर्य अब जवाब दे चुका है। बेरोज़गारी, महंगाई, राजनीतिक भ्रष्टाचार और आजादी पर पाबंदी के खिलाफ जनता का गुस्सा सड़कों पर उतर आया है। सत्ता पर काबिज दलों की बेरुखी और व्यवहार इस आन्दोलन को और भड़काता है।
जनाक्रोश का यह रूप अब केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं, बल्कि एक गहरे सामाजिक संकट में बदलता दिख रहा है जोकि नेपाल की जनता के मन मे सत्ता के प्रति मोहभंग को दर्शाता है।
लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा: राजनीतिक अस्थिरता और संस्थागत कमजोरी
नेपाल का लोकतंत्र अभी भी अपनी जड़ों को मजबूत नहीं कर पाया है। संसद में बार-बार बदलती सरकारें, गठबंधन की राजनीति और सत्ताधारी दलों की स्वार्थपूर्ण नीतियां लोकतंत्र की नींव को हिला रही हैं।
हिंसा और विरोध प्रदर्शनों से यह साफ है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता खासकर युवा वर्ग का भरोसा डगमगा रहा है। यह स्थिति उस देश के लिए बेहद खतरनाक है जिसने अभी-अभी लोकतंत्र की यात्रा शुरू की थी।
नेपाल की वर्तमान अस्थिरता केवल आंतरिक संकट नहीं है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है—क्या नेपाल का लोकतंत्र लंबे समय तक जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर पाएगा?
सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर असर
नेपाल केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी गहरे संकट से गुजर रहा है। हिंसा और विरोध प्रदर्शनों ने समाज को विभाजित कर दिया है। युवा वर्ग, जो नेपाल के भविष्य की रीढ़ है, आज बेरोज़गारी और असुरक्षा के कारण हताश है।
नेपाल में ग्रामीण और शहरी समाज के बीच का अंतर भी बढ़ रहा है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी तथा शहरी इलाकों में रोजगार और सुविधाओं पर दबाव, दोनों मिलकर नेपाल के सामाजिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।
हिंसा का सीधा असर पर्यटन उद्योग पर भी पड़ा है। नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर करती है, और अस्थिरता की यह छवि वैश्विक स्तर पर नेपाल की पहचान को नुकसान पहुंचा रही है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य: नेपाल क्यों है वैश्विक चिंताओं का केंद्र?
नेपाल का भूगोल उसे एक रणनीतिक महत्व देता है। यह भारत और चीन के बीच स्थित है—दोनों एशियाई महाशक्तियों के लिए नेपाल एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक बफर ज़ोन है।
भारत के लिए नेपाल न केवल एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से जुड़ा देश है, बल्कि एक महत्वपूर्ण सुरक्षा साझेदार भी है। नेपाल की अस्थिरता भारत की सीमाओं पर अप्रत्यक्ष सुरक्षा खतरा पैदा कर सकती है।
चीन के लिए नेपाल उसकी “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) का अहम हिस्सा है। चीन लगातार नेपाल में निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बढ़ावा देकर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी नेपाल की स्थिति पर नजर रख रहा है क्योंकि दक्षिण एशिया में किसी भी प्रकार की अस्थिरता का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर पड़ सकता है।
नेपाल में राजनीतिक संकट का भारत पर संभावित प्रभाव
नेपाल की अस्थिरता का सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ना तय है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा, सांस्कृतिक संबंध और व्यापारिक साझेदारी है। नेपाल में हिंसा और अस्थिरता के कारण—
सुरक्षा चुनौतियां: सीमावर्ती क्षेत्रों में उग्रवाद और अवैध गतिविधियों का खतरा बढ़ सकता है।
आर्थिक असर: भारत-नेपाल व्यापार प्रभावित होगा, खासकर ऊर्जा, कृषि और पर्यटन क्षेत्र में।
सामाजिक असर: लाखों नेपाली मजदूर भारत में काम करते हैं। नेपाल में अस्थिरता उनके पलायन और भारत के श्रम बाजार पर असर डाल सकती है।
भूराजनीतिक चुनौती: चीन नेपाल में अपने प्रभाव को और बढ़ा सकता है, जिससे भारत की सामरिक स्थिति पर दबाव पड़ेगा।
भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह नेपाल की राजनीतिक स्थिरता के प्रयासों में सहयोगी भूमिका निभाए, लेकिन उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का भी पालन करे।
नेपाल का भविष्य: चुनौतियां और संभावनाएं
नेपाल का भविष्य आज एक दोराहे पर खड़ा है। एक ओर जनता का बढ़ता गुस्सा और सत्ता की लालसा से ग्रस्त नेता, और दूसरी ओर लोकतंत्र को स्थिर करने की आवश्यकता।
संभावित रास्ते:
राजनीतिक सुधार: पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यवस्था।
युवा सशक्तिकरण: शिक्षा और रोजगार पर विशेष ध्यान।
सामाजिक एकता: ग्रामीण-शहरी और जातीय अंतर को कम करना।
अंतरराष्ट्रीय संतुलन: भारत और चीन के बीच संतुलित कूटनीति।
नेपाल के युवाओं को यह समझना होगा कि हिंसा और अस्थिरता से न तो जनता की उम्मीदें पूरी होंगी और न ही देश का विकास संभव है। इसके उलट नेपाल पर गिद्ध दृष्टि जमाये विदेश ताकतें भी नेपाल में हो रहे आंदोलन को और हिंसक बना कर नेपाल को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से अस्थिर और पिछड़ा कर सकती हैं।
निष्कर्ष
नेपाल में जारी हिंसा केवल सत्ता संघर्ष का परिणाम नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और समाज दोनों की अग्निपरीक्षा है। जनता का गुस्सा यह संदेश दे रहा है कि अब “सत्ता के खेल” से ऊपर उठकर जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का समय आ गया है।
भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें नेपाल पर हैं। यदि नेपाल स्थिरता और विकास का रास्ता चुनता है, तो यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा। लेकिन यदि अस्थिरता और हिंसा बढ़ती है, तो इसके गंभीर परिणाम भारत और वैश्विक स्तर पर महसूस किए जाएंगे।
नेपाल का भविष्य आज इस सवाल पर टिका है—क्या यह छोटा हिमालयी देश अपनी अस्थिर राजनीति और हिंसा से उबरकर शांति और विकास का नया अध्याय लिख पाएगा?